छत्तीसगढ़ के जनजातीय गीत


घोटुलपाटा गीत 
  • अनेक आदिवासी क्षेत्रों में मृत्य गीत गाने की परंपरा है| मृत्यु के अवसर पर मुड़िया आदिवासियों में घोटुल पाटा के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है| इसे बुजुर्ग व्यक्ति गाते हैं, जो मुख्यतः राजा जोलोंग साय की कथा होती है| 
लिंगोपेन गीत
  • लिंगो की स्तुति में गाए जाने वाला गीत है| इस गीत में धरती के मालिक लिंगो को बताया गया है| इसमें बताया गया है कि नृत्य और गीत की उत्पत्ति इन्ही से हुई है| माड़िया-गीत तथा माड़िया नृत्य लिंगो की देन है| 
छेरता गीत 
  • नई फसल आने की खुशी में यह गीत गाया जाता है| यह बस्तर में प्रतिवर्ष पौष की पूर्णिमा को मनाया जाता है| इसे "छेरछेरा" भी कहा जाता है| इस पर्व  बालक-बालिकाओं की टोलियां नगरों तथा गांवों में दो दिनों तक प्रसन्नतापूर्वक गाती है और दान मांगती है| 
तारा गीत 
  • नई फसल आने समय यह गीत नवयुवतियों द्वारा गाया जाता है| इस दौरान युवतियाँ समूहबद्ध होकर द्वीप प्रज्ज्वलित कर पुष की रात में गाती है और अंत में पिकनिक मनाती है|
चईतपरब गीत 
  • बस्तर में यह गीत स्त्री-पुरुष की प्रतिद्वंदिता का गीत है तथा चैत्र की रातों में गाया जाता है| यह गीत श्रृंगार भरपूर है| इस गीत में एक-दूसरे का उपहास किया जाता है| 
रीलो गीत 
  • मुड़िया जनजाति के वैवाहिक गीतों को "रीलो गीत" कहते हैं| यह मूलतः माड़िया-मुड़िया गीत है| यह किसी भी समय (विवाह के अवसर पर रात्रि) बारी-बारी स्त्रियों तथा पुरुषों द्वारा गया जाता है| गायक नृत्य की मुद्रा में रहते हैं और मांदरी नमक वाद्य के साथ मांदरी नृत्य करते हैं| 
लेंजा गीत 
  • यह विशुद्ध हल्बी गीत है| इसके गए जाने का समय कोई भी हो सकता है, मौज में जब मन आ जाए| यह स्त्रियों तथा पुरुषों के द्वारा साथ-साथ तथा पृथक तौर पर भी गया जा सकता है| 
कोटनी गीत 
  • यह वैवाहिक गीत होता है| लग्न के सुअवसर पर विवाहस्थल पर स्त्री-पुरुष सामूहिक रूप से इसे गाते हैं| यह भी श्रृंगार परक गीत है| इसमें उड़िया और भतरी का प्रभाव है| 





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