राउत नृत्य

यह नृत्य छत्तीसगढ़ का एक विशिष्ट लोकनृत्य है, जो देश के किसी अन्य राज्य में प्रचलित नहीं है| यह नृत्य छत्तीसगढ़ के राउत (यादव) जातियों द्वारा किया जाता है| इसे "गहिरा नृत्य" के नाम से भी जाना जाता है| ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार श्रीकृष्ण के कंस पर विजय प्राप्ति के बाद यह नृत्य विजय के प्रतीक स्वरूप किया जाता है| यह एक शौर्यपरक नृत्य है, जिसमे श्रृंगार की प्रधानता होती है|
 
तह नृत्य दीपावली पर्व गोवर्धन पूजा से प्रारंभ होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है| इस नृत्य में राउत लोग टोलियां बनाकर गाँव/शहरों में घर-घर जाकर धन-देवता का चित्र बनाते हैं तथा पशुओं में सुहई बांधकर उस परिवार के तथा पशुओं के लिए मंगल कामना करते हैं|  
यह नृत्य एक पुरुष-प्रधान सामूहिक नृत्य है| नर्तकों की वेशभूषा विविधतापूर्ण तथा आकर्षक होती है| सिर में पगड़ी बांधते हैं, जिसके एक किनारे पर मोर पंख की कलमी सजी होती है| तन पर रंगीन छींटदार सलूखा तथा कमर के नीचे धोती या लोचना पहनते हैं| सीने पर कौड़ियों से सजा वस्त्र तथा कौड़ियों का बाजूबंद बाहों पर बांधते हैं| इस नृत्य में नर्तक लोगों के एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में ढाल होता है| इस नृत्य के दौरान लाठी, तलवार, भाला, गुरुद इत्यादि अस्त्र-शस्त्रों से सौर्य प्रदर्शन भी किया जाता है| इस नृत्य में गंड़वा वाद्य यत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें निशान, मोहरी, टिमकी, गुपुथ प्रमुख होते हैं, जिसे गाड़ा लोगों द्वारा बजाया जाता है| 


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