- यह मिटटी ज्वालमुखी द्वारा निःसृत लावा शैलों के तोड़-फोड़ से बनता है|
- स्थानीय भाषा में इसे कन्हार मिट्टी भी कहा जाता है|
- प्रदेश में पायी जाने वाली इस मिट्टी में लोहे और चुने की मात्रा मुख्य रूप से पायी जाती है| यही कारण है कि इस मिट्टी का रंग काला होता है|
- वस्तुतः काली मिट्टी बेसाल्ट नामक आग्नेय चट्टानों के अपरदन से बनी है|
- फेरिक टाइटेनियम एवं मृतिका के सम्मिश्रण के कारण इसका रंग काला दिखाई देता है|
- पानी पड़ने पर यह मिटटी चिपकती है तथा सूखने पर बड़ी मात्रा में दरारें पड़ती है|
- इस प्रकार के मिटटी में लोहा, मैग्नीशियम, चुना तथा अल्युमिना खनिजों तथा जीवश्मों की पर्याप्तता होती है|
- फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा पोटास का अभाव इस मिटटी में होता है|
- यह मिट्टी क्षारीय प्रवृति की होती है|
- इस मिट्टी का PH मान 7-8 होता है|
- यह चना, गेंहू एवं गन्ना के लिए सर्वोत्तम मिट्टी होती है|
- अधिक आर्द्रताग्राही होने के कारण यह मिट्टी कृषि हेतु उत्तम मानी जाती है|
- धान की फसल के लिए यह सर्वोत्तम मिटटी है|
- इस मिट्टी के साथ बरसात में कृषि कार्य में असुविधा होती है|
- गर्मी में लंबी दरारें पड़ने के कारण इसमें सूर्य प्रकाश और हवा गहराई तक पहुँचती है, जिसके कारण यह अधिक उपजाऊ होती है|
- मुख्यतः इस मिटटी का विस्तार कवर्धा, राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर तथा गरियाबंद जिलों में है|( नोट: वृष्टि छाया वाले क्षेत्रों में विस्तार)
Comments
Post a Comment