यह बस्तर की प्रमुख जनजाति है| इनका संकेन्द्रण नारायणपुर तथा कोंडागांव है|
मुड़िया जनजाति सगोत्री समूह में विभाजित होती है, जिनके अलग-अलग गणचिन्ह या टोटम होता है|
गोंड़ी और हल्बी इनकी प्रमुख है|
इनके प्रमुख देवता लिंगोपेन है|
लिंगोपेन प्रसिद्ध मुड़िया जनजाति के संस्थापक है|
भगेली विवाह, दूध लौटावा विवाह प्रचलित है|
मुड़िया जनजाति में "सल्फी" मुख्य पेय पदार्थ है|
कृषि, वनोपज संग्रहण, कुछ मात्रा में शिकार तथा मजदूरी आदि आजीविका का मुख्य स्त्रोत है|
मुड़िया समूह के प्रमुख को मांझी कहा जाता है|
मुड़िया लोग भूमि माता तथा पूर्वज की पूजा करते हैं| इसके अलावा ठाकुरदेव एवं महादेव की भी पूजा की जाती है|
मुड़िया जनजाति के लोग कला प्रिय होते हैं|
नवाखानी, जात्रा, सेसा इनके प्रमुख त्यौहार है|
मुड़िया जनजाति में उत्सवों की श्रृंखला को "ककसार" कहा जाता है तथा इस दौरान किए जाने वाले नृत्य ककसार नृत्य" कहते है|
ककसार, हल्कीपाटा, मांदरी, कोलांग, घाटी आदि भी मुड़िया जनजाति की प्रमुख नृत्य हैं|
किसी की मृत्यु होने पर मुड़िया लोगों द्वारा "घोटुलपाटा नृत्य" किया जाता है
मुड़िया समूह के लोग अपनी कला संस्कृति एवं परम्पार की रक्षा के लिए सदैव सजग रहते हैं|
मुड़िया जनजाति के जीवन पर आधारित, वेरियर एल्विन ने "मुड़िया एण्ड देयर घोटुल" की रचना की है, जिसके कारण बस्तर की संस्कृति को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पहचान मिली|
विवाह के अवसर पर मुड़िया समूह को लोगों द्वारा "रीलो गीत" गाते हैं|
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