यह नृत्य गोंड़ और बैगा जनजाजति में प्रचलित है| यह नृत्य दशहरे में आरंभ होकर पूरे शरद ऋतू की रातों को चलता है| गोंड़ एवं बैगा जनजाति के लोग अपने आदि देव को प्रसन्न करने हेतु सैला नृत्य करते हैं| यह नृत्य पुरुषों के द्वारा किया जाता है| इसमें नर्तक अपने हांथो में डंडा लेकर नृत्य करते हैं| इस दौरान दोहे भी बोले जाते हैं| इस नृत्य को "डंडा नाच" भी कहते हैं| इस नृत्य में मांदर प्रमुख वाद्य होता है|
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