- यह आधुनिक औद्योगिक सभ्यता का आधार स्तंभ होता है|
- छत्तीसगढ़, लौह अयस्क की दृष्टि से भी समृद्ध राज्य है|
- छत्तीसगढ़ में लगभग 2731 मिलियन टन लौह अयस्क का भण्डार है, जो देश का लगभग 18.67% है|
- लौह अयस्क के भंडारण के दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान है|
- प्रदेश में मुख्य रूप से हेमेटाइट प्रकार का लौह अयस्क पाया जाता है|
- छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क धारवाड़ युगीन चट्टानों में पाया जाता है|
- प्रदेश के खनिज राजस्व में लौह अयस्क से लगभग 29.63% का योगदान है|
- राज्य में लौह अयस्क का प्रति टन औसत मूल्य 2826 रु. है
- प्रदेश में दंतेवाड़ा जिले की बैलाडीला पहाड़ियों के लौह भण्डार विश्व के सर्श्रेष्ठ लौह अयस्क भंडारों में से एक है|
- बैलाडीला(दंतेवाड़ा) एशिया का सबसे बड़ा लौह अयस्क है|
- बैलाडीला में इसका खनन राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा किया जाता है|
- राज्य में उत्खनित लौह अयस्क विशाखापट्नम बंदरगाह द्वारा जापान एवं चीन को निर्यात किया जाता है|
- दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए बैलाडीला से विशाखापट्नम बंदरगाह(आंध्रप्रदेश) तक रेलमार्ग का निर्माण किया गया है|
- राज्य में लौह अयस्क का सर्वप्रथम उत्पादन सन 1968 में किरंदुल माइंस(दंतेवाड़ा) में किया गया था| द्वितीय सन 1980 को बचेली(दंतेवाड़ा) में किया गया था|
- देश का शुद्धतम लौह अयस्क छतीसगढ़ के अकलीआमा तथा चेलिकआमा में पाया जाता है|
- यहाँ के लौह अयस्क में 65 फीसदी से भी अधिक लोहा पाया जाता है|
लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र
- रावघाट माइंस (कांकेर)
- बैलाडीला (दंतेवाड़ा)
- पावारस, कचोरा (कोंडागांव)
- छोटे डोंगर (नारायणपुर)
- चारामा (कांकेर) (नवीन क्षेत्र- मेटाबोदली, हाहालद्दी)
- दल्लीराजहरा (बालोद)
- बोरिया टिब्बू (राजनांदगांव)
- अकलीआमा, चेलिकआमा, एकलामा (कवर्धा)
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