सुआ नृत्य

यह नृत्य छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लोकप्रिय लोकनृत्य है| यह नृत्य महिलाओं एवं किशोरियों द्वारा किया जाता है| यह नृत्य किसी जाति विशेष तक सिमित नहीं  है, अपितु इनमे सभी जातियों की महिलाएं भाग लेती हैं| सुआ नृत्य कुंआर महीने में किया जाता है| खरीफ फसल तैयार होने के बाद दीपावली के कुछ दिन पूर्व यह नृत्य आरंभ होता है तथा समापन दीपावली की रात्रि में शिव-गौरी विवाह के आयोजन से होता है| इसलिए सुआ नृत्य को "गौरी नृत्य" भी कहा जाता है|

इस नृत्य में महिलाएं टोली बनाकर समीप के गांव में भ्रमण करती हैं और प्रत्येक घर के सामने गोलाकार झुण्ड बनाकर ताली के थाप पर नृत्य करते हुए गीत गाती है| घेरे के मध्य में एक टोकरी लाल कपड़े से ढंककर रखी होती है, जिसमे चारों तरफ धान भरा रहता है तथा मध्य में दो मिट्टी के बने सुआ शिव-गौरी के प्रतिक स्वरूप रखे रहते हैं| 


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