छत्तीसगढ़ का प्रवाह तंत्र

छत्तीसगढ़ के चहुँमुखी विकास में यहाँ की नदियों का महत्वपूर्ण स्थान है| यहाँ आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक जीवनशैली में जल पूजा का अपना स्थान रहा है| प्रदेश की नदियां पवित्र धरोहर के रूप में संजोयी गई है| इन नदियों का यहाँ के पुरातन इतिहास और परंपरागत मूल्यों से सीधा संबंध रहा है| छत्तीसगढ़ की रेखा यहाँ की नदियाँ है| मुख्य नदियों में सहायक नदियों के सम्मिलन से अपवाह तंत्र विकसित होती है| 

सम्पूर्ण भारत को प्रवाह तंत्र के आधार पर दो भागों में बांटा गया है- पहला उत्तर भारत के प्रवाह तंत्र, जिसके अंतर्गत विध्यांचल से उत्तर का भाग सम्मिलित है तथा दूसरा दक्षिण भारत का प्रवाह तंत्र, जिसके अंतर्गत दक्षिण भारत का प्रायद्वीपीय पठार आता है| 

भौगोलिक विस्तार तथा भौतिक बनावट के दृष्टि से छत्तीसगढ़ दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय पठार का भाग है| इस कारण छत्तीसगढ़ का प्रवाह तंत्र दक्षिण भारत के प्रवाह तंत्र से समानता रखता है|  छत्तीसगढ़ में प्रवाह तंत्र अनुवर्ती है, जो ढाल के अनुरूप है| यहाँ की नदियाँ जल परिवहन के लिए अनुपयुक्त है| 

सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को प्रवाह तंत्र के आधार पर 4 नदी अपवाह तंत्र में वर्गीकृत किया गया है-
  1. महानदी अपवाह तंत्र 
  2. गोदावरी नदी अपवाह तंत्र 
  3. सोन-गंगा नदी अपवाह तंत्र 
  4. नर्मदा नदी अपवाह तंत्र 

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